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पुलिस स्टेशन से जुड़े हुए 10 महत्वपूर्ण मानव अधिकार
भारत में हर अपराध से सम्बंधित कानून बने हुए है। फिर चाहे वो चोरी से सम्बंधित हो या किसी का क़त्ल करने से हो। इसी प्रकार से पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेती है तो उनके भी अधिकार दिए हुए है। लेकिन कई बार हमें अपने अधिकारों के बारे में पता नहीं होता है और इसका नाजायज फायदा पुलिस उठा लेती है। कानून में हम सभी को अधिकार मिले हुए हैं। इस ब्लॉग में आप जानेंगे की जब आप कोई पुलिस स्टेशन जाते है तब आप किन किन अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते है।
पुलिस स्टेशन और पुलिस लॉकअप में जो आम आदमी को अधिकार दिए हुए है उसे मानव अधिकार कहा जाता है। ऐसे न जाने कितने ही केस है जिसमे पुलिस थानों में मानव अधिकारों का हनन होता है और इसका मुख्य कारण जागरुकता की कमी है। दरअसल आज भी अधिकांश लोगों को उनके अधिकारों के बारे में पता नहीं है। अगर आपके मानव अधिकारों का पुलिस द्वारा हनन किया जाता है तो आप इसकी शिकायत जिले के पुलिस अधिकारी या थाने के भारसाधक अधिकारी को या मानव अधिकार आयोग को भी कर सकते हैं।
10 महत्वपूर्ण मानव अधिकार:
- पुलिस FIR दर्ज करने से मना नहीं कर सकती:
पुलिस रेगुलेशन रूल्स के मुताबिक, जो कोई व्यक्ति पुलिस थाने जाता है FIR यानि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के लिए तो ये पुलिस की जिम्मेदारी है FIR को दर्ज करना। पुलिस आपको FIR दर्ज करने से मना नहीं कर सकती। CrPC की धारा 154(4) के तहत ये पुलिस की जिमेदारी होती है की FIR दर्ज करने के बाद एक कॉपी भी आपको निशुल्क दे। कई बार ऐसा होता है की पुलिस कहती की ये हमारे थाने का मामला नहीं है। लेकिन इसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है की यदि कोई मामला उस थाने का नहीं है तो पुलिस जीरो FIR दर्ज करेगी। जीरो FIR दर्ज करने के बाद उस मामले को सम्बंधित थाने के छेत्राधिकार में भेज दिया जाता है। तो यदि कोई पुलिस अधिकारों आपकी FIR लिखने से आना कानि करे तो आप धारा 154 का हवाला देकर FIR दर्ज करवा सकते है।
- पुलिस लॉकअप में मारपीट या अमानवीय व्यवहार नहीं कर सकती:
गिरफ्तार करने के बाद पुलिस किसी भी मुजरिम के साथ, जब तक की वो पुलिस लॉकअप में है उसके साथ मारपीट और अमानवीय व्यव्हार नहीं कर सकती है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार अपने निर्णय में यह आदेश दिया है कि पुलिस थाने लाए गए किसी भी व्यक्ति से मारपीट या अमानवीय व्यवहार नहीं कर सकती है। यदि कोई भी पुलिस अधिकारी ऐसा करता है तो उसके खिलाफ सख्त कदम उठाये जायेंगे।
- किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार नहीं कर सकती:
CrPC की धारा 150 के मुताबिक पुलिस को व्यक्ति की गिरफ्तारी का कारण बताना होगा। जब भी पुलिस व्यक्ति को गिरफ्तार करने जाती है तो उसे पहले बताना होगा की उसने क्या अपराध किया है। इसके बाद ही पुलिस गिरफ्तार कर सकती है। गिरफ्तार किये जाने वाला व्यक्ति खुद पुलिस से गिरफ्तारी का कारण पूछ सकते हैं और पुलिस को कारण बताना होगा। कारण बताने के लिए पुलिस मन नहीं कर सकती है।
- 24 घंटे से ज्यादा पुलिस हिरासत में नहीं रख सकती:
CrPC की धारा 167 के मुताबिक पुलिस किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं रख सकती है। गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर नजदीकी न्यायालय के समक्ष पेश करना जरूरी होता है। यदि कोई व्यक्ति को दूसरे राज्य या शहर से गिरफ्तार करती है और उसे सम्बंधित पुलिस थाने लेन में ही 24 घंटे का समय लग जाता है तो उसे अगले दिन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है। इसका मतलब ये है की इन 24 घंटे में यात्रा का समय शामिल। गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को 24 घंटे से ज्यादा पुलिस लॉकअप में नहीं रख सकते है।
- पुलिस थाने में आपको भूखा नहीं रखा जा सकता:
पुलिस रेगुलेशन रूल के मुताबिक, गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को थाने में भूखा नहीं रख सकती है। उसे समय पर भोजन कराना पुलिस की जिम्मेदारी होती है और इसके लिए पुलिस को भत्ता भी मिलता है। अगली बार से अगर कोई गिरफ्तार किये गए व्यक्ति के मानव अधिकार का हनन होता है और उसे पुलिस खाना नहीं देती है लिए आवाज उठा सकते है और खाने को भोजन की मांग कर सकते है।
- अपराधी को हथकड़ी नहीं लगा सकती पुलिस:
किसी भी अपराधी को हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार नहीं किया जा कसता है। इसके लिए हमारे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कई बार आदेश दिए हुए है और कहा है की पुलिस हिरासत में लिए गए व्यक्ति और विचाराधीन बंदी को एक कारागार से दूसरे कारागार, थाने से न्यायालय में पेश करते समय या न्यायालय से कारागार ले जाते समय हथकड़ी नहीं लगा सकती। लेकिन कई बार घोर आदतन अपराधी भी होते है तो ऐसे में न्यायालय से अनुमति लेनी होती है हथकड़ी के साथ गिफ्तारी की।
- रिमांड पर लिए व्यक्ति का 48 घंटे में पुलिस को चिकित्सीय परीक्षण कराना होता है:
अगर पुलिस किसी विचाराधीन बंदी को रिमांड पर लेती है तो 48 घंटे के भीतर पुलिस को रिमांड पर लिए गए व्यक्ति का चिकित्सीय परीक्षण अवश्य कराना होगा। अगर पुलिस ऐसा नहीं करती तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना होगी। इसके लिए पुलिस को जेल भी हो सकती है।
- गिरफ्तारी किये गए व्यक्ति के परिवार को सूचना देना:
जब पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो सबसे पहले गिरफ्तार किये गए व्यक्ति के घर पर सुचना देती है। कानून के तहत गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को यह अधिकार मिला है कि परिवार वालो को या उसके रिश्तेदारों को इसकी सूचना दे सकें। इसके लिए पुलिस आपको खुद मोबाइल देती है परिवार से बात करने को, अगर मोबाइल की व्यवस्था नहीं है तो पत्राचार से इसकी सूचना भिजवाने की जिम्मेदारी पुलिस की है और यह अधिकार आम नागरिक को सर्वोच्च न्यायालय से मिला है। CrPC में हमें यह सब अधिकार दिए हुए है।
- पुलिस थाने पर जमानत लेना:
CrPC की धारा 436 के तहत पुलिस अपराधी को थाने से ही जमानत दे सकती है। 2 तरीके के अपराध होते है, एक काम गंभीर अपराध और दूसरे घोर प्रकृति के अपराध। जो काम गंभीर प्रकृति के अपरध होते है उसमे पुलिस अपराधी को पुलिस स्टेशन से ही जमानत दे सकती है।
- रेप पीड़िता से महिला पुलिस ही कर सकती है पूछताछ:
निर्भया केस के पहले और उस केस के बाद से ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों में कहा है की थाने में जो भी महिला को गिरफ्तार करके लेकर आया जायेगा उससे केवल महिला पुलिस अधिकारी ही पूछताछ कर सकेगी। थाने में पूछताछ के दौरान आने वाली महिलाओं के साथ पुलिस अभद्र व्यवहार अथवा अश्लील भाषा का प्रयोग नहीं कर सकती। और रेप पीड़ित से हमेशा ही केवल महिला पुलिस अधिकारी ही पूछताछ कर सकेगी। इसका कारण यह है कि वह महिला पहले से ही मानसिक व शारीरिक वेदना झेल चुकी होती है ऐसे में पुलिस को चाहिए कि ऐसी महिला के साथ संवेदनशीलता दिखाए। सुप्रीम कोर्ट का यह भी आदेश है कि बलात्कार पीड़िता की रिपोर्ट महिला पुलिसकर्मी ही लिखेगी और पूछताछ भी महिला पुलिसकर्मी ही करेगी। अगर ऐसा संभव ना हो तो पूछताछ के समय कोई महिला पुलिसकर्मी मौजूद रहने जरूरी है और पीड़िता के परिवार की भी कोई महिला साथ रह सकती है।
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